शाहजहांपुर में होली के दिन लाट साहब का जुलूस निकाला जाएगा। इसको लेकर शहर ही 67 मस्जिद-मजारों को तिरपाल से ढका जा रहा है। संभल में भी 8 मस्जिदों को पन्नी से कवर किया जा रहा। जिससे उनपर होली का रंग ना पड़े। दरअसल, यहां लाट साहब मतलब अंग्रेजों के शासन के क्रूर अफसर। जिनके विरोध में हर साल होली में ये जुलूस निकाला जाता है।
पहले एक युवक को लाट साहब के रूप में चुना जाता है। उसका चेहरा ढक कर उसे जूते की माला पहनाकर बैलगाड़ी पर बैठाकर तय मार्ग पर घुमाया जाता है। इस दौरान लाट साहब पर अबीर-गुलाल के साथ जूते-चप्पल भी फेंके जाते हैं।
शाहजहांपुर में 2 जुलूस
शाहजहांपुर में लाट साहब के दो जुलूस निकाले जाते हैं। जिसको छोटे और बड़े लाट साहब के नाम से जाना जाता है। छोटे लाट साहब का जुलूस सरायकाईयां मोहल्ले से निकाला जाता है। शहर के कई क्षेत्रों से होते हुए यह जुलूस वापस सरायकाईयां पुलिस चौकी पर समाप्त कर दिया जाता है।
लाट साहब को कोतवाल देते हैं सलामी
इसी तरह बड़े लाट साहब का जुलूस चौक से शुरू होता है। इसका रुट करीब 8 किलोमीटर का है। जहां कोतवाल उनको सलामी देकर नेग देते हैं। उसके बाद रोशनगंज, बेरी चौकी, अंटा चौराहा होते हुए थाना सदर बाजार क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद बाबा विश्वनाथ मंदिर तक ले जाकर उसका समापन किया जाता है।
इस दौरान दोनों जुलूसों के रूट के 67 मस्जिद और मजारों को तिरपाल से ढक दिया जाता है। ताकि इस दौरान धार्मिक स्थल पर रंग फेंक कर कोई माहौल को न बिगाड़ सके।
इतिहासकारों के अनुसार, यह परंपरा शाहजहांपुर के अंतिम नवाब अब्दुल्ला खां ने 1746-47 में शुरू की थी। किले पर पुन: कब्जा करने के बाद इसकी शुरुआत की गई थी। उन्होंने किला मोहल्ला में एक रंग महल बनवाया था। अब उसे रंग मोहल्ला बोलते हैं। अब्दुल्ला खां वहां पर आकर हर साल होली खेलते थे। तब जुलूस निकाला जाता था, जिसमें हाथी-घोड़े होते थे, बैंड बाजा का इंतजाम रहता था। बाद में अब्दुल्ला की मौत हो गई। लेकिन उनके ना रहने के बाद भी लोगों ने जुलूस निकालना बंद नहीं किया।
बाद में भारत में अंग्रेजों का शासन आया। होली पर नवाब का जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लेकिन लोगों ने जुलूस निकालना बंद नहीं किया। उसके तरीके बदल दिए गए। पहले जो जुलूस उत्सव के रूप में निकाला जाता था। अब उसे अंग्रेजों के विरोध में निकाला जाने लगा। इसका नाम नवाब साहब के जुलूस की जगह लाट साहब का जुलूस कर दिया गया। अंग्रेजों का भारत के लोगों पर बहुत जुल्म था। यही वजह है कि 1947 के बाद से इस जूलूस में हुड़दंगई शामिल हो गई। अंग्रेजों पर गुस्सा निकालने के लिए लोग कुछ तरह तरह के तरीके अपनाने लगे।
लाट साहब को पीटते हुए निकालते हैं जुलूस
इस जुलूस में एक युवक को लाट साहब की उपाधी दी जाती है। उसे नग्न करके पूरी तरह तिरपाल से ढक दिया जाता है। लोग उसे जूते-चप्पल और झाड़ुओं से पीटते हुए नगर में घूमते रहते हैं। उसके बदले में उसको शराब की बोतलों से लेकर कपड़े और रुपये इनाम के रूप में दिए जाते हैं। ज्यादातर बनाए जाने वाले लाट साहब को अन्य जिलों से लाया जाता है।
ड्रोन कैमरे से होगी निगरानी
आरसी मिशन के सरायकाईयां से निकलने वाला लाट साहब का जुलूस सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जाता है। यह मिश्रित आबादी के बीच से निकलता है। प्रशासन को यहां सुरक्षा के खास इंतजाम करने पड़ते हैं। इसलिए यहां पर ड्रोन कैमरे के जरिए जुलूस की निगरानी की जाती है।
जुलूस को लेकर गड्ढों को भरने का काम शुरू
रोड मैप गड्ढों को भरने से लेकर ढीले तारों की मरम्मत कराने का काम शुरू कर दिया जाता है। इस बार शहर में सीवर लाइन डाले जाने के कारण हर तरफ खुदाई की गई थी। लेकिन जुलूस का समय करीब आते ही कार्य को रोककर गढ्ढों को ठीक करने का कार्य शुरू कर दिया गया है।
संभल में एकादशी रंग खेलने की परंपरा
वहीं संभल की सदर कोतवाली क्षेत्र में आज एकादशी रंग खेलने की परंपरा है। साथ ही खाटू श्याम बाबा की झांकी के संग चौपाई निकाली जाएगी। इस मार्ग पर शाही जामा मस्जिद सहित 7 मस्जिद और एक मदरसा है, जिसे सुरक्षा के मद्देनजर बैरिकेडिंग कर तिरपाल से ढका गया है। जिससे पुलिस प्रशासन और स्थानीय लोगों को किसी प्रकार की दिक्कत का सामना न करना पड़े।
मस्जिद-मजारों को तिरपाल से ढकने को लेकर मुस्लिम समाज के धर्म गुरुओं ने क्या कहा…
इमाम बोले- मस्जिद और मजारों को ढकना ठीक नहीं
शाहजहांपुर शहर के इमाम हुजूर अहमद मंजरी ने बताया कि, ”मस्जिद और मजारों को ढकना ठीक नहीं है। इसको ढकने से भय का माहौल बनता है और मुस्लिम समुदाय खुद को असुरक्षित महसूस करता है। करीब चार पांच साल पहले सिर्फ इतना कहकर धार्मिक स्थलों को ढका गया था कि, जुलूस के बाद फौरन तिरपाल को हटा दिया जाएगा। लेकिन प्रशासन ने इसको परम्परा ही बना दिया। उनका कहना है कि, तिरपाल से ढकने के बजाए प्रशासन को ज्यादा से ज्यादा पुलिस बल तैनात करना चाहिए। माहौल बिगाड़ने वालों पर कार्रवाई करनी चाहिए।”
इससे जाता है गलत मैसेज- मौलाना कासिम रजा खां
वहीं मौलाना कासिम रजा खां ने बताया, ”धार्मिक स्थल को ढकने वाली परम्परा बहुत पुरानी नहीं है। धार्मिक स्थलों को ढकना बिल्कुल गलत है। इससे दुनिया को गलत मैसेज जाता है। धार्मिक स्थलों को ढकने पर आपत्ति है। इसको लेकर करीब एक सप्ताह पहले डीएम को ज्ञापन भी दिया था, लेकिन प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं देता। धार्मिक स्थलों को ढकने से शहर में भय का माहौल बन जाता है।”
वहीं, शाहजहांपुर के सिटी मजिस्ट्रेट आशीष कुमार सिंह ने बताया कि किसी की धार्मिक भावनाओं को कोई ठेस न पहुंचे, इसके लिए धार्मिक स्थलों को ढका जा रहा है। यह जिम्मेदारी प्रशासन की तरफ से नगर निगम टीम को सौंपी गई है। लाट साहब के जुलूस को शांतिपूर्ण संपन्न कराने के लिए तैयारी लगभग मुक्म्मल हो चुकी है।
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