कानपुर देहात: होलिका दहन को लेकर शहर से गांव तक होली लगाई गई थी। कहीं लकडियों के ढ़ेर तो कहीं घासफूस एकत्र कर होली जलाने का प्रबंध किया गया था। हालांकि कानपुर देहात के एक गाांव में नारियल की होली जलाई गई। वहां होलिका की परिक्रमा भी लोग करते हैं। नारियल की होली जलाने एक कारण ये है कि वातावरण शुद्ध होगा। वहीं दूसरा कारण बताया जाता है नारियल सिर के चारों तरफ घुमाने के बाद जलाने के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि जिसने नारियल उतार कर रखा उसकी सारे दुख तकलीफ भी होली में जल जाती है।
अकबरपुर तहसील के जुनैदपुर गांव में करीब दो दशक से ये परंपरा चल रही है। गांव के बाहर बालाजी का मंदिर है। उसी मंदिर परिसर में नारियल एकत्र कर होली तैयार की जाती है। इस होली पर यहां भारी भीड़ जुटती है। जिला प्रशासन यहां पुलिस फोर्स भी तैनात करता है। ताकि व्यवस्था न बिगड़े। बालाजी मंदिर के संस्थापक ओम प्रकाश शास्त्री ने बताया कि राजस्थान मेंहदीपुर बालाजी में नारियल की होली जलती है। यहां भी उसी तर्ज पर ये परंपरा दो दशक पहले शुरु हुई थी। अब इसे हर वर्ष निभाया जा रहा है। यहां होली पर अहमदाबाद गुजरात से भी लोग आते हैं। वहीं कानपुर, झांसी, फतेहपुर, हरदोई से भक्त होली पर नारियल चढ़ाने आते हैं।
कहां से आते हैं इतने नारियल
होली जलाने के लिए बड़ी संख्या में नारियल कहा से आते हैं, इस सवाल पर बालाजी मंदिर के संस्थापक ओम प्रकाश शास्त्री बताया कि पूरे साल भक्त मंदिर में नारियल चढ़ाते हैं। उन्हें एकत्र करके सुरक्षित रखा जाता है। होली के आसपास बड़ी संख्या में लोग नारियल चढ़ाने आते हैं। होलिका लगने पर तो जिले के अलावा आसपास के जनपदों के लोग आते हैं और नारियल उतार कर (सिर ऊपर से घुमाकर) होली में रखते हैं। ऐसी मान्यता है जो नारियल उतारकर रखता है उसकी सारे संकट और दुख होली में नारियल के साथ जल जाते हैं, उसका जीवन खुशहाल हो जाता है। इस वर्ष भी करीब एक लाख नारियल वहां एकत्र किए गए थे।
वातावरण भी होता है शुद्ध
मंदिर के संस्थापक ओम प्रकाश शास्त्री ने बताया कि नारियल की होली जलाने का एक वैज्ञानिक कारण ये भी है, इससे वातावरण शुद्ध होता है। नारियल का धुंआ जहां तक जाता है, उस क्षेत्र की बीमारियां दूर हो जाती है। मानव के साथ पशु पक्षी भी स्वस्थ रहते हैं।
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