लखनऊ की चार प्रमुख इमारतें अब होटल बनेंगी। 200 साल से ज्यादा पुरानी यह इमारतें खंडहर में बदल चुकी हैं। पर्यटन विभाग अब इनकी दशा सुधारकर एक नई दिशा देने की तैयारी में लगा है। उनके इस फैसले से विभाग की कमाई में इजाफा होगा। होटल या फिर पैलेस बनाए जाने के बाद इन इमारतों में राजस्थान की शाही इमारतों की तरह आलीशान शादियां होंगी। पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
टीम इन इमारतों की स्थिति देखने पहुंची। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों से मिलकर इसके इतिहास को जाना। पर्यटन विभाग के जरिए इसके संवारने के प्लान को जाना। आइए सब कुछ जानते हैं।
इमारतों की हालत और इतिहास जानने से पहले चल रही गतिविधियों को जानते हैं…
अब पर्यटन विभाग के हवाले शाही इमारतें
लखनऊ के कैसरबाग में 500 मीटर के बीच कुल पांच इमारतें हैं, इसमें बड़ी छतर मंजिल, रोशनउद्दौला कोठी, कोठी गुलिस्तान-ए-इरम, कोठी दर्शन विलास और फरहद बक्स कोठी मौजूद है। फरहद बक्स कोठी को छोड़कर सभी 4 इमारतों को पुरात्व विभाग से पर्यटन विभाग को सौंप दिया गया है। अब इसके रखरखाव की जिम्मेदारी पर्यटन विभाग की है।
पुरातत्व विभाग की निदेशक रेनू द्विवेदी ने कहा, पहले ये इमारतें हमारे विभाग के पास थी तो हम इसका रखरखाव कर रहे थे। अब इन इमारतों को डी-नोटिफाई कर दिया गया है अब इसकी जिम्मेदारी पर्यटन विभाग के पास है। आगे इन इमारतों में जो भी होगा उसका फैसला पर्यटन विभाग ही करेगा।
इन इमारतों को किस तरह से आगे बेहतर किया जाएगा, इसे जानने हम पर्यटन विभाग की ऑफिस पहुंचे। वहां पर एक मैडम ने बताया, विभाग से मंजूरी मिलने के बाद हम लोगों ने इस प्रस्ताव को कैबिनेट अप्रूवल के लिए भेजा है। अगर वहां अप्रूवल मिलता है तो उसके बाद वित्त विभाग, लेबर मिनिस्ट्री में अप्रूवल मिल जाएगा। फिर पूरा विभाग इसे लेकर बैठक करेगा और तय करेगा का इन इमारतों को किस तरह से बनाया जाए।
मैडम आगे कहती हैं, यह सब दो-चार दिन की बात नहीं है। इसमें अभी वक्त लगेगा। इसे PPP मॉडल में विकसित करना है। हर जगह से सहमति मिलने के बाद लोगों से प्रपोजल मांगे जाएंगे। इस प्रपोजल में होटल, पैलेस, म्यूजियम या फिर लाइब्रेरी जैसी चीजें हो सकती हैं। विभाग इन चीजों को लेकर बैठक करेगा और फिर जो सबसे अच्छा होगा उस पर मुहर लगेगी। उसके लिए ई-टेंडर निकाले जाएंगे जो भी व्यक्ति इसे हासिल करता है फिर वह इसे अपने हिसाब से बनाएगा।
राजस्थान के तर्ज पर विकसित करने की तैयारी
राजस्थान इस वक्त शाही शादी करने वालों की पहली पसंद बना हुआ है। यहां जयपुर, उदयपुर, जैसलमेर और जोधपुर में स्थित किले, भव्य हवेलियों और महलों में अक्सर शहनाई की गूंज सुनाई देती है। यहां शादी के लिए लोग करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं। ठीक इसी तरह से यहां बड़ी छतर मंजिल, रोशनउद्दौला कोठी, कोठी गुलिस्तान-ए-इरम और दर्शन विलास को विकसित किया जाएगा।
राजस्थान की इमारतों और लखनऊ की इन इमारतों में जो मूल अंतर है वह ये कि वहां की व्यवस्था निजी है। यहां की इमारतों पर पर्यटन विभाग का ही अधिकार होगा। इसके आर्किटेक्चर में कोई बदलाव नहीं होगा। ई-टेंडर के जरिए जिन्हें यह मिलेगा उनको एक सीमित समय के लिए ही मालिकाना हक मिलेगा। हालांकि अभी इसकी प्रक्रिया क्या होगी, कितने सालों के लिए दिया जाएगा इस पर कोई ऑर्डर नहीं जारी किया गया है।
इस ग्राफिक के जरिए आप देखिए राजस्थान में कहां-कहां शाही शादियां होती है।
बड़ी छतर मंजिल में हुई थी फिल्म शूट
बड़ी छतर मंजिल यूपी की विशेष इमारतों में से एक है। हाईकोर्ट की पुरानी बिल्डिंग के सामने महात्मा गांधी मार्ग पर स्थित 238 साल पुरानी इस इमारत की बनावट विशेष है। इसका भू-तल भी दो मंजिल है। हालांकि ये तभी नजर आता है जब बगल से गुजर रही गोमती नदी का जलस्तर काफी कम हो जाता है। पुराने समय में इस इमारत की छत पर दो टेलिस्कोप लगाए गए थे जिससे खगोलीय अध्ययन किया जाता था।
देश आजाद हुआ तो इस इमारत को सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट को सौंप दिया गया। करीब 60 सालों तक यहां दफ्तर रहा लेकिन इमारत की स्थिति खराब हुई तो इसमें से CDRI का दफ्तर बदल दिया गया। 2016 में यहां जॉली LLB फिल्म की शूटिंग की गई। तब इस इमारत को कोर्ट में बदल दिया गया था। आज भी इसके अंदर का स्ट्रक्चर कोर्ट के जैसा नजर आता है।
2019 में पुरातत्व विभाग ने इस इमारत के निचले हिस्से में खुदाई शुरू की, तो उसे 42 फुट लंबी और 11 फुट चौड़ी गोंडला नाव मिली। माना जाता है कि इसी नाव के जरिए नवाब नदी के जरिए कहीं आने-जाने का काम करते थे।
अपने प्रधानमंत्री के लिए नवाब ने बना दी कोठी
कैसरबाग बस स्टेशन के ठीक सामने रोशनउद्दौला कोठी है। अवध के दूसरे नवाब नसीरउद्दीन हैदर ने इसे 1835 के आसपास बनवाया था। नसीरउद्दीन हैदर के शासनकाल में ताज-उद-दीन मुहम्मद हुसैन खान 1832 से 1837 तक अवध के प्रधानमंत्री रहे। नवाब उन्हें उस वक्त 25 हजार रुपए सैलरी देते थे। साथ ही बाकी इमारतों के रखरखाव के लिए 5 लाख रुपए सलाना देते थे। नवाब ने उसके कार्यकाल से खुश होकर उन्हें रोशन-उद-दौला का खिताब दिया। तभी से इस इमारत का नाम रोशनउद्दौला कोठी रखा गया।
रोशनउद्दौला कोठी इंडो-फ्रैंच शैली में बनी थी। इसका मूल रूप आयताकार है। अंदर एक बड़ा बरामदा है। जहां प्रधानमंत्री खुद बैठक करते थे। इसमें जो बालकनी हैं वो छोटी हैं। इमारत के चारों तरफ सीढ़ियां लगी हैं। इमारत का भार छोटी-छोटी बीमों के जरिए एक बड़े बीम पर रखा गया है। हालांकि इसमें दीवारें उतनी चौड़ी नहीं बनाई गई जितनी बाकी की इमारतों में है। 1860 में अंग्रेजों ने इसे अपने कब्जे में ले लिया और फिर दफ्तर बना दिया। देश आजाद हुआ तो इसमें पुरातत्व विभाग का दफ्तर बना दिया। कुछ समय पहले ही इसकी मरम्मत की गई थी।
रानियों के रहने के लिए नवाब ने बनवाई दर्शन विलास कोठी
अवध के पहले नवाब गाजीउद्दीन हैदर का 1827 में जब निधन हुआ तो उनके बेटे नसीरउद्दीन हैदर नए नवाब बने। नसीरउद्दीन को ऐशो-आराम पसंद था। उनका ज्यादातर वक्त औरतों और अपने विदेशी दोस्तों के साथ बीतता था। 1836 में जब ये बना तब इसका नाम कुदसिया महल रखा गया। कुदसिया बेगम नवाब नसीरउद्दीन की पत्नी थीं। उनके ही साथ नवाब की तीन और बेगम इसी महल में रहती थीं।
इस महल का डिजायनिंग गुंबद इसकी भव्यता दिखाता है। इतिहासकार रौशन तकी बताते हैं, “पहले यह कोठी छोटी छतर मंजिल का हिस्सा था लेकिन जब छोटी छतर मंजिल नहीं रही तो इसका भी नाम बदलकर दर्शन विलास कर दिया गया।” अंग्रेज जब आए तब इस महल में इंजीनियर रहते थे। देश आजाद हुआ तो यूपी की सरकार ने इसे मेडिकल स्वास्थ्य निदेशालय को दे दिया। लंबे वक्त तक इसमें दफ्तर रहा। लेकिन जर्जर होने के कारण इसे खाली कर दिया गया।
2018 में सरकार ने इसे अपनी स्मार्ट सिटी का हिस्सा मानते हुए सुधार की बात की थी, काम भी करवाया। लेकिन ये काम नाकाफी साबित हुए इसलिए स्थिति जस की तस बनी रही।
मनोरंजन के साधनों से भरपूर था गुलिस्तान-ए-इरम
दर्शन विलास इमारत के सामने गुलिस्तान-ए-इरम है। नवाबों की यह एक ऐसी इमारत थी, जिसमें मनोरंजन के सभी साधन मौजूद थे। इसमें एक बड़ी पुस्तकालय थी। उस पुस्तकालय में धार्मिक किताबों के साथ दुनियाभर की राजनीतिक किताबें भी रखी गई थी। यहां नवाब बैठकर घंटों विमर्श करते थे। इसकी एक वजह यह थी कि यह इमारत रेराकोटा ईंटों से तैयार की गई थी जो गर्मियों में महल को ठंडा रखता था।
करीब 200 साल पुरानी इस इमारत की बनावट में यूरोपीय और मुगल दोनों की शैली नजर आती है। इसमें ठोस लोहे की बनी तिजोरियां बनाई गई थी। माना जाता है कि इसमें नवाब अपना शाही खजाना रखते थे। इस इमारत को 1857 के विद्रोह के दौरान बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। देश आजाद हुआ तो इसे सरकार ने राज्य स्वास्थ्य विभाग को सौंप दिया। लेकिन जब हालत खराब होने लगे तो इसे खाली कर दिया गया।
सरकार ने इसकी मरम्मत करवाई तो कई भूमिगत सुरंगों के बारे में पता चला। इतिहासकार बताते हैं कि इन सुरंगों से एक कोठी दूसरी कोठी से जुड़ी थी। नवाबों की बेगमें इसी सुरंग से आती जाती थी। स्मार्ट सिटी योजना के जरिए इसका कायाकल्प किया गया। तब अधिकारियों ने कहा था कि इसका इस्तेमाल साहित्य से जुड़े कार्यक्रमों के लिए किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब पर्यटन विभाग इसे सुधारने की जिम्मेदारी ले रहा।