लखनऊ: दिल में हमने ठान लिया है, जीवन का मकसद जान लिया है, मानवता को पहचान लिया है, समाज सेवा को ही धर्म अपना मान लिया है, ये लाइनें खुशी पांडेय में सटीक बैठती हैं। 23 साल की खुशी पांडेय 18 साल की उम्र से ही समाज सेवा करने की ठानी। दरअसल, हम बात कर रहे हैं लखनऊ के आशियाना इलाके में रहने वाली खुशी पांडेय की। खुशी भले ही 23 साल की हों, लेकिन उनके कार्य और हौसले ऐसे हैं कि हर तरफ लोग उनके कार्यों की सराहना कर रहे हैं, क्योंकि वो इन दिनों लखनऊ समेत आसपास के अन्य जिलों में साइकिल पर वाइब्रेंट लाइट लगा रही हैं, जिससे रात के अंधेरे में लोग दुर्घटना का शिकार न हों। वहीं, जिस तरह से उन्होंने अपने नाना को खोया, वो नहीं चाहती कि कोई परिवार अपने किसी सदस्य को खोए।
खुशी ऐसे इकट्ठा करती हैं रुपये
सोशल मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से चर्चा का विषय बनी खुशी पांडेय से एनबीटी ऑनलाइन ने बातचीत की। इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसी बातें कही, जिससे जानकर आप उनकी सोच और समझ को सलाम करेंगे। खुशी खुद लॉ की छात्रा हैं, लेकिन समाजसेवा में पैसे की कमी न हो, इसलिए वो सोशल मीडिया और यूट्यूब पर लीगल फर्म के माध्यम से लॉ के छात्रों को पढ़ाने का काम करती हैं। खुशी खुद लॉ की स्टूडेंट हैं। इसके अलावा पेड प्रमोशन, एनजीओ और लोगों के साथ-साथ परिवार की मदद से जो पैसे इकठ्ठा होते हैं, उन्हें अलग-अलग अभियान चलाकर समाज सेवा करने का काम कर रही हैं।
इसलिए शुरू किया लाइट लगाने काम
खुशी ने कहा कि वो रात को अंधेरे में साइकिल से जाने वालों को रोकती हैं। इसके बाद उन्हें समझाकर उनकी साइकिल में बैटरी से चलने वाली लाइट लगाती हैं। इसके पीछे का उद्देश्य सिर्फ यह है, ताकि अंधेरे में उनकी साइकिल दूर से आने वाले गाड़ियों के ड्राइवर को नजर आ जाए और वह हादसे का शिकार न हो। दरअसल, 25 दिसंबर 2022 की एक रात घने कोहरे में दुकान से घर लौटते समय कैलाश नाथ तिवारी की साइकिल में कार सवार ने पीछे से टक्कर मार दी थी। इस हादसे में जान गंवाने वाले खुशी के नाना थे। उनकी मौत के बाद खुशी ने ठान लिया कि ऐसे हादसे रोकने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगी और उन्होंने जरूरतमंद लोगों की साइकिल की बैक साइड पर वाइब्रेंट लाइट लगाना शुरू किया।
80 युवा वॉलंटियर की टीम के साथ कर रहीं काम
मिशन उजाला के तहत साइकिल में लाइट के साथ ही ट्रैक्टर, ऑटो रिक्शा और बैटरी रिक्शे में रिफ्लेक्टिव स्टीकर लगा रही हैं। इस काम को करने के लिए खुशी ने भले ही अकेले बीड़ा उठाया हो, लेकिन अब उनके पास करीब 80 युवा वॉलंटियर की अच्छी टीम है। जिनकी मदद से लखनऊ समेत आसपास के जिलों में 1500 से ज्यादा बैक साइड वाइब्रेंट लाइट लगा चुकी हैं। खुशी पांडेय ने कहा कि आने वाले दिनों में साइकिल से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सरकार अगर कोई ऐसा कानून बना दे, जिससे कि सभी साइकिलों पर ऐसी लाइट पहले से लगी हो या फिर जैसे मोटर व्हीकल एक्ट का उल्लंघन करने पर गाड़ियों का चालान होता है, वैसे ही साइकिल के लिए भी कर दिया जाए तो इस समस्या से जल्द छुटकारा मिल सकेगा। वहीं, जो इस समस्या को दूर करने का उद्देश्य है, वो भी पूरा हो जाएगा, नहीं तो ऐसे ही पूरी जिन्दगी यह काम करना पड़ेगा।
60 से 70 हजार महीने खुद कमाती हैं खुशी
खुशी बताती हैं कि 3-4 कामों से वो खुद महीने में 60-70 हजार रुपये कमा लेती हैं। वहीं, कुछ रिश्तेदार और कुछ लोग उनके कार्यों को बढ़ावा देने के लिए रुपये डोनेट भी करते हैं। खुशी ने बताया कि अभी उनके द्वारा जो काम किए जा रहे हैं।, उसके लिए एक महीने में करीब 80-90 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं, लेकिन इसके अलावा भी कई प्रोजेक्ट हैं, जिन पर काम करना है। उसके लिए फंड इकट्ठा नहीं हो पा रहा है। बावजूद इसके अभी वो महिलाओं को माहवारी की समस्या के लिए जागरूक करने के लिए ऑपरेशन दाग चला रहीं हैं। वहीं, भुखमरी खत्म करने के प्रोजेक्ट अन्नपूर्णा और सड़क हादसों को रोकने के लिए मिशन उजाला चला रही हैं।
कुछ संस्थाएं कर दें मदद तो हो जाएंगे ये काम- खुशी
खुशी का कहना है कि बहुत सारे लोग सोशल इश्यू पर कार्य कर रहे हैं, लेकिन उनका कुछ खास असर नहीं देखने को मिल रहा है, इसलिए देश के अन्य राज्यों और यूपी के अलग-अलग जिलों में अपने प्रोजेक्ट पर काम करेगें तो उसमें ज्यादा पैसे लगेंगे। हालांकि, उनके पास समाजसेवा करने के कई और भी प्रोजेक्ट हैं। ऐसे में अगर कुछ संस्थाएं आगे आकर उनकी मदद कर देंगी तो उन प्रोजेक्ट्स पर भी काम करके लोगों की मदद की जा सकती है। 18 बरस की उम्र से ही खुशी ने अपने मोहल्ले के आसपास झोपड़पट्टी में रहने वाले बच्चों को ओपन क्लास में पढ़ाना शुरू कर दिया था। यह सिलसिला अब भी जारी है। इसके अलावा समय के साथ-साथ लोगों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए कुछ और प्रोजेक्टस पर भी काम शुरू किया।
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