शनिवार यानी 15 अप्रैल की शाम माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की प्रयागराज में गोली मारकर हत्या कर दी गई. यह घटना तब हुई जब अतीक और अशरफ को मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया जा रहा था. जिस वक्त उसपर गोली चलाई गई उस वक्त न सिर्फ उसके आसपास पुलिस थी बल्कि मीडिया भी मौजूद थी.
इस हत्या में तीन आरोपी कथित रूप से शामिल है. जिन्हें पुलिस ने बाद में गिरफ्तार कर लिया. हालांकि आरोपी की गिरफ्तारी हो गई है लेकिन अतीक अहमद और अशरफ की हत्या ने एक बार फिर यूपी पुलिस और कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है. इस राज्य में पहले भी पुलिस कस्टडी में हत्या को लेकर सवाल उठ चुके हैं और कई बार विपक्ष ने योगी सरकार को घेरा भी है. यूपी में सिर्फ अतीक और अशरफ नहीं, पुलिस कस्टडी में हत्याओं एक पूरा इतिहास है.
20 सालों में 1,888 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत
गृह मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले 20 सालों में 1,888 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इन मामलों में पुलिसकर्मियों के खिलाफ 893 केस दर्ज किए गए और 358 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर हुई. हालांकि सिर्फ 26 पुलिसकर्मियों को सजा दी गई.
उत्तर प्रदेश में 5 साल में पुलिस कस्टडी में 41 की मौत
सुप्रीम कोर्ट ने साल 1996 में एक केस की सुनवाई के दौरान एक आदेश में कहा था कि किसी भी इंसान की पुलिस कस्टडी में हत्या जघन्य अपराध है. इसके बाद भी आंकड़े पर नजर डालें तो साल 2017 से लेकर साल 2022 तक उत्तर प्रदेश में पुलिस कस्टडी में 41 लोगों की हत्या हो चुकी है. लोकसभा में गृह मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार साल 2017 में 10 लोगों की मौत हुई, साल 2018 में 12 लोगों की पुलिस कस्टडी के दौरान मौत हुई, साल 2019 में 3, 2020 में 8 और 2021 में 8 लोगों की पुलिस कस्टडी में मौत हुई है.
जानिए यूपी में पुलिस कस्टडी के दौरान हत्या के 5 बड़े मामले
रफीक हत्याकांड: शनिवार शाम अतीक अहमद और अशरफ की मौत ने राज्य में लगभग सत्रह साल पहले हुए रफीक हत्याकांड की यादें ताजा कर दी है. कुख्यात डी-2 गिरोह के सरगना रफीक की भी पुलिस कस्टडी में हत्या कर दी गई थी. दरअसल रफीक को एसटीएफ के सिपाही धमेंद्र सिंह चौहान के मर्डर के मामले में कोलकाता से गिरफ्तार कर रिमांड पर शहर लाया गया था. उसके बाद कोर्ट ने उसे एके-47 की बरामदगी के लिए जूही यार्ड के पास ले जाने का आदेश दिया. उसे वहां ले जाया जा ही रहा था कि रफीक पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाई गई और रफीक को पुलिस कस्टडी में ही मौत के घाट उतार दिया गया.
राजेश टोंटा की हत्या: मथुरा में पुलिस कस्टडी के दौरान मारे जाने की दो घटनाएं हो चुकी है. पहली घटना थी 17 जनवरी साल 2015 की. उस वक्त ब्रजेश मावी की हत्या के मामले में कुख्यात राजेश टोंटा को मथुरा जेल में बंद किया गया था. जेल में राजेश टोंटा और मावी गिरोह के बीच गैंगवार हो गया. जेल में फायरिंग हुई और बंदी अक्षय सोलंकी की मौत हो गई. वहीं इस गैंगवार में राजेश टोंटा सहित दो लोग घायल हो गए. उसी दिन रात के लगभग 11:45 बजे घायल टोंटा को इलाज के लिए आगरा ले जाया जा रहा था तभी रास्ते में उसे गोलियों से भून दिया गया.
मोहित की हत्या: साल 2012 में सपा नेत्री की हत्या के आरोप में जेल में बंद मोहित की पुलिस कस्टडी में हत्या कर दी गई थी. यह घटना उस वक्त घटी जब मोहित को पेशी के लिए ले जाया जा रहा था. उस वक्त इस हत्या का आरोप शूटर हरेंद्र राणा और उसके साथियों पर लगाया गया था.
लखनऊ में श्रवण साहू की हत्या: अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए लखनऊ के सआदतगंज में लड़ाई लड़ रहे एक पिता श्रवण साहू की पुलिस की सुरक्षा में हत्या कर दी गई थी. श्रवण पर जब हमला किया गया तब वह घर पर थे और उनके घर के बाहर पुलिसकर्मी सुरक्षा दे रहे थे. श्रवण पर कुछ बाइक सवार बदमाश आए और ताबड़तोड़ गोलियां चलाई जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई.
अल्ताफ की मौत: 9 नवंबर 2021 को कोतवाली पुलिस की हिरासत में 20 साल के एक युवक अल्ताफ की मौत हो गई थी. पुलिस के अनुसार अल्ताफ के मौत की वजह आत्महत्या थी. उन्होंने बताया कि उसने हवालात के टॉयलेट में टंकी के पाइप पर जैकेट की डोरी से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी. हालांकि परिवार ने पुलिस पर हत्या करने का आरोप लगाए थे.
पुलिस हिरासत में हत्या होने के बाद कानून प्रक्रिया क्या है
सुप्रीम कोर्ट के वकील ध्रुव गुप्ता ने एबीपी को बताया कि अगर किसी विचाराधीन कैदी की पुलिस हिरासत में हत्या कर दी जाती है तो संबंधित अधिकारियों पर आईपीसी की धारा 302, 304, 304ए और 306 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है. इसके अलावा, पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 7 और 29 के अनुसार लापरवाह अधिकारियों को बर्खास्तगी या निलंबन की सजा दी जा सकती है.
धारा 302 में हत्या का प्रावधान है, जबकि 304 में गैर इरादतन हत्या का प्रावधान है. 304ए में लापरवाही से मौत का प्रावधान है और 306 आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रावधान है.
कब और कहां की गई अतीक अहमद की हत्या
दरअसल अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ से पूछताछ करने के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस उसे कॉन्विन हॉस्पिटल में मेडिकल जांच के लिए ले जा रही थी. जिस अस्पताल में उसका जांच होना था वह इलाहाबाद हाईकोर्ट से लगभग 3 किमी की दूरी पर था, वहीं दूसरी तरफ जिस जगह पर गोली चलाई गई वहां से प्रयागराज एसएसपी का आवास भी मात्र 6 किमी दूरी पर है.
गोली चलने से पहले अतीक और अशरफ हथकरी में थे और पत्रकारों से घिरे हुए थे. पत्रकार अतीक से सवाल पूछ रहे थे. इसी बीच हमलावरों ने गोलियां चलानी शुरू कर दी. उसने लगातार 9 राउंड फायरिंग की और जबतक पुलिस उसे पकड़ने की कोशिश करते तब तक इन दोनों की मौत हो चुकी थी.