उत्तर देश में इस बार कम बारिश होने की वजह से खरीफ की फसलों को बचा पाना मुश्किल हो रहा है। सिर्फ विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष के भी कई विधायक व सांसद की प्रदेश के विभिन्न अंचलों खासतौर पर पूर्वांचल और मध्य यूपी को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग तेज होती जा रही है। यह जनप्रतिनिधि मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपने-अपने क्षेत्र की हालत बयान करते हुए सूखा घोषित करने की मांग कर रहे हैं।
मौसम विभाग के ताजा आंकड़ों के अनुसार अब जून से 19 अगस्त तक प्रदेश में बारिश का आंकड़ा पचास फीसदी से भी नीचे गिर चुका है। 19 अगस्त तक प्रदेश में सामान्य के मुकाबले महज 48.1 प्रतिशत बारिश हुई है। 25 जिले ऐसे हैं जहां अब तक 40 प्रतिशत से भी कम बारिश हुई है।
भाजपा के सांसद जगदम्बिका पाल ने तो पिछले दिनों लोकसभा में मांग की कि केन्द्र सरकार सूखे का आंकलन करने के लिए एक अध्ययन दल यूपी भेजे। बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पूर्वांचल को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की है।
गाजीपुर के सदर सपा विधायक जयकिशन साहू,पीलीभीत में बीसलपुर के विधायक बाबूराम पासवान, बरखेड़ा विधायक स्वामी प्रवक्तानंद, बलरामपुर से पूर्व विधायक धीरेन्द्र प्रताप सिंह धीरू, किसान नेता मो.खलील शाह, पीलीभीत में भाजपा जिला अध्यक्ष आदि जनप्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर या मीडिया में बयान जारी कर पूर्वांचल व मध्य यूपी को सूखाग्रस्त घोषित किये जाने की मांग उठायी है।
मगर कृषि विभाग सूखा नहीं मानता
मगर कृषि विभाग के अफसर कहते हैं कि चूंकि 98 प्रतिशत रोपाई- बोवाई की जा चुकी है इसलिए फिलहाल प्रदेश में सूखे जैसे हालात नहीं हैं। मगर किसानों की परेशानी यह है कि बोई गयी फसलों को अब बारिश न होने की वजह से बचाया कैसे जाए। कई इलाकों में तो किसानों ने धान की फसल में एक दो सिंचाई करने के बाद लम्बे समय से बारिश न होने पर किराये के नलकपू के पानी से सिंचाई करने में बढ़ती लागत देख फसल को भगवान भरोसे ही छोड़ दिया।
अफसर बताएं कि बोई जा चुकी फसल बचाएं कैसे-भाकियू भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक) के प्रदेश अध्यक्ष हरनाम सिंह वर्मा कहते हैं-कृषि विभाग के जो अफसर यह कह रहे हैं कि 98 प्रतिशत बोवाई या रोपाई हो चुकी है इसलिए सूखा नहीं है यह तो बताएं कि बोई गयी या रोपी गयी फसलों को अब बारिश न होने पर बचाया कैसे जाए। सभी किसानों के पास सरकारी नलकूप या नहर के पानी से सिंचाई की सुविधा नहीं है।
ऐसे में बिजली से चलने वाले निजी नलकपू को किराये पर लेकर अपने खेत खासतौर पर धान को आठ पानी देने की सिंचाई के लिए प्रति एकड़ 64 हजार रुपये की लागत कौन किसान लगा सकता है। डीजल 90 रुपये लीटर बिक रहा है, डीजल से चलित पम्पों से आखिर कितनी सिंचाई कर सकता है। वर्मा के अनुसार कृषि विभाग के बोवाई-रोपाई के आंकड़े झूठे हैं, सच तो यह है कि अभी तक तमाम जिलों में मक्का, अरहर, उर्द, ज्वार की बोवाई ही नहीं हो पायी है। पानी न मिलने की वजह से धान की फसल पीली पड़ती जा रही है।
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