यंग भारत ब्यूरो
नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में बाबरी ढांचे गिराए जाने से संबंधित सभी तरह की कार्यवाही को बंद करने का फैसला किया है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस मामले से जुड़ी दाखिल अवमानना याचिका को भी बंद किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समय बीतने के साथ अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में शीर्ष अदालत के 2019 के फैसले को देखते हुए अब इस संबंध में अवमानना याचिका का कोई औचित्य नहीं है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता असलम भूरे अब इस दुनिया में नहीं हैं, इसलिए अब इस मामले को बनाए रखना जरूरी नहीं है.
गौरतलब है कि 6 दिसंबर 1992 में अयोध्या में बाबरी ढांचे को भीड़ द्वारा गिरा दिया गया था. इस मामले में भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित कई नेताओं के खिलाफ केस दर्ज किया गया था. इस मामले के बाद देश भर में सांप्रदायिक दंगे हुए थे. इन दंगों में दो हजार से ज्यादा लोगों की जानें गई थीं. हालांकि बाद में अधिकांश आरोपियों को कोर्ट ने राहत दे दी. बाद में 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में रामजन्मभूमि के पक्ष में फैसला सुनाया. वहीं मुस्लिमों के लिए अयोध्या में एक अलग स्थान में मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ की जमीन मुहैया कराया.
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता मोहम्मद असलम भूरे ने 1991 में एक याचिका दायर की थी. इसके बाद बाबरी ढांचा गिर गया. इसके बाद 1992 में उन्होंने अवमानना याचिका दायर की थी. असलम भूरे की की 2010 में मौत हो गई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा याचिकाकर्ता की मौत भी हो गई है, इसलिए अवमानना याचिका का कोई औचित्य नहीं है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस केस में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के खिलाफ अदालत की अवमानना से जुड़े केस को भी बंद कर दिया. अदालत ने कहा कि 1992 से काफी वक्त बीत चुका है. इसके बाद 2019 में रामजन्मभूमिक-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया है. ऐसे में अब इससे जुड़े मामले का कोई वाजिब वजह नहीं है.
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