लखनऊ में राजकीय बाल गृह में पांच दिनों में चार बच्चियों की मौत हो गई। आशंका है कि बाल गृह में उचित देखभाल न होने से बच्चों को ठंड लग गई जिससे उनकी मौत हो गई। गुरुवार को CMO जांच टीम के साथ पहुंचे, तो उनको कई जगह खामियां मिलीं। हालांकि अभी तक मौतों की सही वजह पता नहीं चल सकी है। मामले में बाल गृह अधीक्षक को सस्पेंड कर दिया गया है। मजिस्ट्रियल जांच के भी आदेश दिए गए हैं। बाल गृह में दो महीने की एक बच्ची वेंटिलेटर पर है।
डॉक्टरों की निगरानी में है बच्ची
सिविल अस्पताल के CMO डॉ. आरपी सिंह ने बताया कि 2 महीने की बच्ची मून वेंटिलेटर पर है। उसका वजन दो किलो है। दो किलो का बच्चा बेहद कमजोर होता है। बच्ची को जब अस्पताल लाया गया था, तब बच्ची की हालत गंभीर थी। लेकिन, इस समय बच्चे का इलाज चल रहा है। वेंटिलेटर पर बच्ची की हालत स्थिर है। बच्ची पीडियाट्रिक विभाग में डॉक्टरों की निगरानी में है।
बाल संरक्षण आयोग के सदस्य अनीता अग्रवाल ने बताया कि बाल गृह की अंतरा, लक्ष्मी, आयुषी व दीपा की मौत हो चुकी है, जबकि मून का इलाज चल रहा है। इसके अलावा मंगलवार को ही प्रयागराज में एक और बच्ची का रेस्क्यू हुआ। बच्ची का इलाज पहले SGPGI में चल रहा था अब लोकबंधु अस्पताल में चल रहा है। बच्ची के पिछले हिस्से में एक बड़ा घाव है।
ठंड से बचाने के पर्याप्त इंतजाम नहीं
बाल गृह की जांच के लिए पहुंची CMO की टीम का दावा है कि मासूमों को ठंड से बचाने के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। दिसंबर-जनवरी में उचित देखभाल न होने से बच्चे ठंड की चपेट में आ गए। उन्हें निमोनिया हो गया। सिविल अस्पताल प्रशासन का भी कहना है कि बच्चे गंभीर हालत में लाए गए थे। DPO विकास सिंह ने पोस्टमॉर्टम करवाने के साथ मजिस्ट्रियल जांच का आदेश दिया है।
इसके साथ ही बाल गृह अधीक्षक को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए तत्काल रिपोर्ट मांगी गई है। बाल गृह की व्यवस्थाओं की निगरानी के लिए दिनेश रावत को प्रभारी बनाया गया है। मामले में बाल गृह प्रबंधन का कहना है कि बच्चियां गंभीर हालत में बाल गृह लाई गई थीं।
बाल गृह अधीक्षक से किया जवाब-तलब
DPO ने बाल गृह अधीक्षक किंशुक त्रिपाठी को कारण बताओ नोटिस जारी कर गुरुवार तक जवाब मांगा है। कहा कि इलाज के स्तर पर बाल गृह से लापरवाही नहीं हुई है। बच्चों के बीमार होने पर उन्हें तत्काल अस्पताल पहुंचा कर इलाज करवाया गया। हालांकि बच्चे क्यों नहीं बच पा रहे हैं, यह तो डॉक्टर ही बता सकेंगे। फिर भी बाल गृह में किस स्तर पर लापरवाही हुई है, इसकी जांच कर दोषियों पर कार्रवाई होगी।
इस तरह हुईं चार मौतें
बाल गृह में जब अंतरा को लाया गया था, तब वह 10 से 15 दिन की थी। उसकी मौत 10 फरवरी को हुई। इससे पहले वह 19 से 28 जनवरी तक भर्ती थी। डिस्चार्ज होकर आने के बाद तबीयत बिगड़ने पर उसे फिर भर्ती कराया गया था। दिसंबर में बाल गृह लाई गई करीब 15 दिन की लक्ष्मी की तभी से तबीयत खराब चल रही थी। इस बीच उसका इलाज होता रहा।
23 जनवरी को दोबारा बुखार आने पर सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। 11 फरवरी को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। आयुषी भी दिसंबर में लाई गई थी, तब वह 16 दिन की थी। वजन कम होने पर उसे केजीएमयू और सिविल अस्पताल में दिखाया गया। आठ फरवरी की सुबह डॉक्टर ने फिर उसकी जांच की। रात को तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया।
उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। 12 फरवरी को उसने दम तोड़ दिया। इसी तरह दिसंबर में जब दीपा लाई गई, तब वह 20 दिन की थी। उसे निमोनिया था। इस बीच थैलेसीमिया होने का भी पता चला। कई बार उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया।
23 जनवरी को बुखार आने पर एडमिट कराया गया। मंगलवार को उसकी भी मौत हो गई। वहीं चार-पांच दिन पहले आए डेढ़ महीने की बच्ची मून की बोनमैरो जांच करवाई गई है। उसकी प्लेटलेट्स लगातार कम हो रही थी।
बाल गृह में कुल 75 बच्चे रह रहे हैं
राजकीय बालगृह में नवजात से लेकर दस साल के बच्चे रखे जाते हैं। यह महिला कल्याण विभाग की ओर से संचालित है। यहां निराश्रित, लावारिस नवजात शिशुओं को बाल कल्याण समीति के आदेश से रखा जाता है।
इस बाल गृह में फिलहाल 28 नवजात सहित कुल 75 बच्चे रह रहे हैं। उनका पालन पोषण उत्तर प्रदेश का महिला कल्याण विभाग करता है। शहर में कहीं भी पाए गए लावारिस शिशु को यहां रखा जाता है। उनके इलाज से लेकर खानपान आदि सभी जिम्मेदारियां इस बाल गृह की होती है।
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