सब धर्मों का सम्मान करें पूजें पूजा के ठौरों को
उरई(जालौन)। उत्तर प्रदेश साहित्य सभा जनपद जालौन इकाई की जानिब से एक काव्य संध्या का आयोजन। युवा कवि दिव्यांशु दिव्य के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में जिले के वरिष्ठ साहित्यकार यज्ञदत्त त्रिपाठी जी की अध्यक्षता, डॉ. अमरेंद्र पोतस्यायन जी के मुख्य आतिथ्य में एक काव्य गोष्ठी सिटी लाइफ स्कूल राजेंद्र नगर उरई , युवा कवि दिव्यांशु दिव्य के जन्मदिन के मौके पर हुई, जिसमें नगर के दो दर्जन से अधिक कवि एवं शायरों ने काव्य पाठ किया। काव्य गोष्ठी की शुरुआत इंदु विवेक उदैनिया की सरस्वती वंदना एवं मो. नईम जिया की नाते पाक से हुई। इसके बाद गोष्ठी में शुरु हुई गीत ग़ज़लों, मुक्तकों की बौछार। काव्य पाठ के लिए आये साहित्य सभा के जिलाध्यक्ष डॉ. अनुज भदौरिया ने पढ़ा – है शत शत बार नमन मेरा, उस साहस की परिपाटी को। सिद्धार्थ त्रिपाठी ने पढ़ा – श्रोता को आनंदित कर दे अंतस पर छा जाये, बिना कहे सब कुछ कह देना ही कविता कहलाये। इसके बाद कवयित्री शिखा गर्ग ने पढ़ा – हाथों की घिस गयी लकीरे काम गृहस्थी का करते, घूम रहे है तब ये बच्चे महंगी महंगी कारों में। युवा कवयित्री शिवा दीक्षित ने पढ़ा – मुझे प्रेम की भीख नहीं सर्वस्व चाहिए, दोनों ओर प्रेम की पीर पले ऐसी दिव्य लौ चाहिये। आजम बद्र ने सुनाया – दौलते तजुर्बात पाई है, कितनी रौशन मेरी कमाई है। मशहूर कवयित्री दिव्यम प्रिया ने सुनाया – सदा चहरे पे ख़ुशियों से भरी मुस्कान हो हरदम, मिलें ख़ुशियां ज़माने की सफर आसान हो हरदम। अपने जन्मदिन के मौके पर होने वाली काव्य गोष्ठी में पढ़ कर सभी का आशीष लिया, उन्होंने पढ़ा – कलयुगी बेटों का जी आज हाल देखो दिव्य, बेटे के लिए ही सवाल बन जाती है माँ, वरिष्ठ कवियत्री माया सिंह माया ने पढ़ा, अगर रहोगे दिल से जो निश्छल, सकल संपदा तुम्हें मिलेगी। झुकेगी कदमों में सारी दुनिया, हवा भी तेरे रुख से चलेगी। राघवेंद्र कनकने ने पढ़ा – कहने को अपने बहुत है अपना सा कोई लगा ही नहीं, तुम्ही कहो कि कहाँ रहे हम किसी के दिल में जगह ही नहीं। इसके बाद गोष्ठी का संचालन कर रहे अभिषेक सरल ने पढ़ा – हाथ आया और फिसल गया, एक ख्वाब नींद को ही निगल गया। वरिष्ठ शायर नईम जिया ने पढ़ा – दिलों में इतनी तो गुंजाइशे रहे बाकी, कि फ़ासला भी हो तो फ़ासला न लगे।ज़िले के मशहूर शाइर शफीकुर्रहमान कशफी ने सुनाया, हमारी कहानी पुरानी बहुत है,मगर इसके दरिया में पानी बहुत है,फ़क़ीरों की सफ़ में तो वो भी खड़ा है,जिसे लोग कहते थे दानी बहुत है,, काव्य गोष्ठी के मुख्य अतिथि डॉ. अमरेंद्र पोतस्यायन जी ने सुनाया – मेरी एक जान थी जो जान ले गयी मेरी, अब तो बेबस है मेरी जान मेरी जान के बिना। विमला तिवारी विमल ने पढ़ा, दरमियाँ फासला हुआ कैसे,बावफ़ा बेवफा हुआ कैसे जल रहे है दिये भी आंधी में इनसे ये हौसला हुआ कैसे, परवेज़ अख़्तर अख्तर ने पढ़ा,कर देता मैं भी चाँद से उसकी मुनासिबत,रखता अगर न दाग़ ख़ुदा माहताब में, ब्रह्म प्रकाश ने सुनाया,शून्य है चेतना यह मन जा रहा निवति में,आज मैं तारा बनूँ घुंम लूं आकाश में,गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे ज़िले के वरिष्ठ्य साहित्यकार यगदत्त त्रिपाठी जी ने अपने अध्यक्षी उदबोधन के साथ पढा, हम जाति पाँति के घेरे में घेरें न स्वंय को औरों को,सब धर्मों का सम्मान करें पूजें पूजा के ठौरों को,,अंत में साहित्य सभा के संयोजक कशफी और स्कूल प्रबंधक तांचल जी सभी का आभार व्यक्त किया।