उरई(जालौन)।आखिर वो दोस्त हमारा तुम्हारा कहाँ गया।साहित्तीक संस्था पहचान एवम साहित्यसभा ने समाजसेवी अशोक होतवानी को दी काव्यात्मक श्रद्धांजलि उरई राजेंद्रनगर स्थित सिटी लाइफ स्कूल में ज़िले के वरिष्ठ कवि यज्ञदत्त त्रि पाठी की अध्यक्षता और ज़िला प्रोवेशन अधिकारी डॉक्टर अमरेंद्र के मुख्य आतिथ्य में एक काव्यगोष्ठी का आयोजन समाजसेवी और साहित्यकारों का सम्मान करने वाले अशोक होतवानी की प्रथम पुण्य तिथि पर हुई।
जिसकी शुरुआत साहित्य सभा के अध्यक्ष अनुज भदौरिया की सरस्वती हुई पश्चात कार्यक्रम संयोजक एवम पहचान संस्था के अध्यक्ष शफीकुर्रहमान कशफ़ी ने अशोक होतवानी को श्रद्धांजल देते हुए कहा महफ़िल में जान रहती थी जिसके वजूद से,आखिर वो दोस्त हमारा तुम्हारा कहाँ गया।गतवर्ष 4 अगस्त की देर शाम बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अशोक होतवानी ने इस असार संसार को अलविदा कह दिया था और सुबह से ही उनकी की पहली पुण्य तिथि पर सिटी स्कूल उरई में गरीबों को भोजन सहित अनेक कार्यक्रम हुए उसी श्रृंखला में शाम को नगर के सभी शायरों और कवियों ने अपनें गीत गज़लों मुक्तकों से होतवानी को शाब्दिक श्रद्धांजलि का दौर शुरू हुआ वहीं अध्यक्षता कर रहे यगदत्त जी ने उनके बारे में उद्बोधन के बाद पढा,आज हम उनका करे स्मरण,मार भी पाता नहीं जिनको मरण,इसके बाद मुख्य अतिथि अमरेंद्र जी ने पढ़ा,जाने वाले कि याद आती है,याद में आंख भीग जाती है,वरिष्ठ कवियत्री माया जी ने पढ़ा,दिव्य रूप दिव्य आत्मा शिक्षक साधु अवतार,श्रद्धांजलि अर्पित तुम्हें करूँ नमन सौ बार,अख्तर जलील ने पढ़ा,भीगी भीगी सी कबा लगती है,तू समुंदर सी हवा लगती है,अनुज भदैरिया ने पढ़ा,इस मंदिर में जो भी गया हर इक गीत श्लोक हुआ,अजर अमर है एक पुजारी जिनका नाम अशोक हुआ,कवियत्री प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम ने पढ़ा,नहीं कटता है तन्हा ज़िन्दगी का ये सफ़र मुझसे,चले आओ भला रूठे हुए क्यों इस कदर मुझसे,फ़रीद अली बशर ने पढ़ा,ये हैं चाचा वो भाई जान मेरे,रह गए बस ज़बान के रिश्ते, शिखा गर्ग ने पढ़ा,दर्द अंतस में छुपाए मुस्कुराते थे सदा,गीत मस्ती में बड़े ही गुनगुनाते थे सदा,इंदु उदैनिया ने पढ़ा,जीवन बीत गया सब मेरा जीने की तैयारी में,अब जीती ये सोच के जाने कितनी बाज़ी हारी मैं, प्रियंका शर्मा ने सुनाया,मन मेरा हर्षित है इतना पावस का मौसम आ गया,चहुँ तरफ हरियाली छाई उपज की हो बसवंत अभिषेक सरल ने पढ़ा,यूँ तो खामोश हर सदा हो जाती है सरल,पर किसी बरगद का यूँ चुप हो जाना उम्र भर अखरता है,किरपाराम कृपालु ने पढ़ा,तुमरे जाने से हुए दुखित यहां कवि वृन्द,तुम दोहा चौपाई थे और अलौकिक छन्द शायर जावेद कसीम ने पढ़ा, उनसो इख़लाक़ के समुंदर का एक गौहर गंवा दिया मैंने,तुमको खोया टी यूँ लगा मुझको अपना सब कुछ लुटा दिया मैंने, वहीं सिद्धार्थ त्रिपाठी ने पढ़ा,चले गए हैं आप हमें विश्वास नहीं होता ,किंतु लगे जब सत्य यही है मन धीरज खोता, इसके अलावा प्रेम नारायण दिक्षत ,सुरेश चंद्र त्रिपाठी,परवेज़ अख्तर, ब्रह्मप्रकाश,असरार मुक़री, दिव्यांशु दिव्य,आज़म बद्र, मुहम्मद फराज खान, टेकचंद, इंतखाब दानिश, हसनैन खान सहित अनेक लोगों ने काव्यात्मक श्रद्धांजलि दी कार्यक्रम का संचालन अनुज भदौरिया और अभिषेक ने किया अंत में आयोजक कशफ़ी और प्रबंधक स्कूल तांछल ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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