मेरठ. पश्चिम उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े कार्तिक मेले में इस बार गोवंश और भैंस वंशों की नो एंट्री रहेगी. पशुओं में लम्पी स्किन डिजीज के चलते योगी सरकार ने यह बड़ा फैसला लिया है. हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर में गंगा किनारे लगने वाले कार्तिक मेले में पश्चिम उत्तर प्रदेश के लगभग 25 लाख श्रद्धालु आते हैं. इस मेले में तमाम किसान और पशुओं के शौकीन अपने भैंसा बुग्गी से पहुंचते हैं और यहां पशुओं की प्रदर्शनी के साथ-साथ विपणन भी किया जाता है, लेकिन लम्पी बीमारी के प्रकोप को बढ़ने से रोकने के लिए सरकार ने इस बार इस परंपरा पर बैन लगा दिया है.
हापुड़ जिलाधिकारी मेधा रूपम ने सीमावर्ती आसपास के तमाम जिलों को पत्र भेजते हुए कहा कि उनके जिले से कोई भी व्यक्ति हापुड़ में पशु लेकर ना आए, अगर कोई ऐसा करता है तो उसे प्रवेश नहीं दिया जाएगा, साथ ही जुर्माना लगाते हुए सख्त कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी. मेरठ के जिलाधिकारी दीपक मीणा ने बताया कि इस बीमारी से पशुओं की त्वचा पर गांठनुमा फफोले व घांव हो जाते हैं. पशु को तेज बुखार बना रहता है और वो चारा खाना भी बंद कर देते हैं. पशुओं में गर्भपात हो जाता है. पशु बांझपन के शिकार भी हो जाते हैं. ये बीमारी 3 से 6 सप्ताह तक बनी रहती है. इलाज के बाद पूर्ण स्वस्थ होने में 3 से 4 माह लग जाता है.
मेले प्रदर्शनी में पशुओं के एक स्थान पर एकत्र होने से लक्षणविहीन किन्तु रोग के वाहक पशुओं द्वारा यह बीमारी अन्य सभी संपर्क में आने वाले पशुओं में घातक रूप से फैलने की प्रबल संभावना है, इसलिए खतरे को रोकने के लिए योगी सरकार ने ये फैसला लिया है. यह बीमारी गाय-भैंसों के साथ-साथ घोड़े, गधे, खच्चर, ऊंट एवं हिरन प्रजाति के पशुओं को भी सर्वाधिक प्रभावित करती है. 29 अक्तूबर से गढमुक्तेश्वर में गंगा किनारे स्नान व मेले का आयोजन किया जाना है. इस मेले में अश्व प्रदर्शनी-अश्व विपणन का कार्य भी होता रहा है, ऐसे में मेले में इस पर रोक लगायी गई है. लोगों से अपील की गई है कि वे गंगा स्नान मेले में किसी भी घोड़े, गधे, खच्चर, गाय, बैल व भैंस को न ले आएं. ऐसी किसी भी प्रदर्शनी का आयोजन भी नहीं कराया जाएगा.
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