मैनपुरी: उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने की बहू डिंपल यादव (Dimple Yadav) ब्रेक के बाद फिर से पॉलिटिक्स में लौट रही हैं। वह अपने ससुर और समाजवादी पार्टी के पितामह मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर होने जा रहे उपचुनाव में मैदान में उतर रही हैं। सपा का मजबूत किला माने जाने वाले मैनपुरी लोकसभा में डिंपल की जीत को तय माना जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि मुलायम के निधन की सहानुभूति लहर और सपा का गढ़ होने की वजह से अखिलेश यादव की पत्नी को चुनाव जीतने में कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा। हालांकि आंकड़े इस बात की पूरी तरीके से पुष्टि नहीं करते हैं। डिंपल के सामने भारतीय जनता पार्टी (BJP) जैसी मजबूत राजनीतिक पार्टी है, जो छोटे से चुनाव को भी मिशन मोड में लड़ती है। वहीं जातिगत पॉलिटिक्स के अलावा चर्चा यह भी है कि भगवा खेमे से मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव को टिकट दिया जा सकता है। संभव है कि डिंपल इन सभी चुनौतियों से पार पा लें। लेकिन एक शख्स जो X-Factor साबित हो सकता है, वह हैं- चाचा शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav)। आइए समझते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है।
मैनपुरी लोकसभा में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें भोगांव, किशनी (सुरक्षित), करहल, मैनपुरी और जसवंतनगर शामिल हैं। इस साल फरवरी-मार्च में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो मुकाबला करीब-करीब टक्कर का ही रहा। यहां करहल और किशनी सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई, जबकि भोगांव और मैनपुरी सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की। जसवंतनगर सीट से शिवपाल सिंह यादव विजयी हुए, जो समाजवादी पार्टी से अलग होकर बनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं। हालांकि इस चुनाव में वह अखिलेश की अगुवाई वाली सपा में के साथ गठबंधन में लड़ रहे थे, इसलिए मैनपुरी लोकसभा का पलड़ा 3-2 से सपा की तरफ ही झुका हुआ नजर आया।
मैनपुरी के आंकड़े दिलचस्प हैं। यह लोकसभा सीट यादव परिवार का अभेद्य गढ़ कही जाती है। पिछले कई चुनावों से लगातार यहां पर साइकल की सवारी ही चलती रही है। यहां तक कि 2014 और 2019 में मोदी लहर के बावजूद भाजपा को यहां पर जीत नहीं मिल पाई थी। यहां से मुलायम और उनके परिवार के भतीजे चुनाव जीतते आ रहे हैं। लेकिन 2019 में हुए पिछले चुनाव के आंकड़े कुछ दिलचस्प हैं। यादव और शाक्य बहुलता वाले मैनपुरी में भाजपा ने मुलायम के मुकाबले प्रेम सिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाया था। यहां मुलायम को जीत तो मिल गई लेकिन यह एकतरफा नहीं रही। कुल प्रतिशत पर वोट डालें तो मुलायम को 52% वोट हासिल हुए, जबकि प्रेम शाक्य उनसे महज 8 फीसदी पीछे 44% वोट शेयर लेकर दूसरे नंबर पर रहे।
मैनपुरी की सभी 5 विधानसभा सीटों का विश्लेषण करें तो 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में शाक्य ने मुलायम को लगभग सभी क्षेत्र में टक्कर दिया था। मैनपुरी विधानसभा में प्रेम सिंह शाक्य महज 5 हजार वोट से मुलायम से पीछे रहे, जबकि भोगांव में उन्होंने मुलायम से 26 हजार वोट अधिक पाए। किशनी की सुरक्षित सीट पर जहां मुलायम को 92 हजार वोट मिले। वहीं शाक्य ने 80 हजार वोट अपनी झोली में डाले। यादव बहुल करहल सीट पर शाक्य को 80 हजार वोट मिले, जबकि समाजवादी नेता के खाते में एक लाख 18 हजार वोट आए। इन चारों सीटों पर मुकाबला लगभग बराबरी का रहा। ऐसे में निर्णायक साबित हुई। शिवपाल सिंह यादव का जसवंतनगर इलाका शिवपाल के गढ़ से मुलायम को एक लाख 57 हजार वोट हासिल हुए, जबकि शाक्य 75 हजार से अधिक वोट से पीछे रहे।