लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अमेठी जिले में एक अधिवक्ता का घर ढहा देने पर सख्त नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि प्रथमदृष्टया यह स्पष्ट है कि गौरगंज के एसडीएम ने घर ढहाने की जो कार्रवाई की है, वह विधि विरुद्ध है। साथ ही राज्य सरकार को मौके पर यथा स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है। सरकारी अधिवक्ता से मामले में सारी जानकारी प्राप्त कर कोर्ट के सामने पेश करने को कहा गया है। अगली सुनवाई 23 नवंबर को होगी।
यह आदेश जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय एवं जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की पीठ ने अमेठी जिला बार एसेासिएशन की ओर से दाखिल एक जनहित याचिका पर पारित किया। एक जनहित याचिका दाखिल कर अमेठी जिला बार एसेासिएशन ने आरोप लगाया है कि जिला व पुलिस प्रशासन लगातार वकीलों का उत्पीड़न कर रहा है। इसी क्रम में एसडीएम, गौरीगंज ने जिला बार एसोसिएशन के महासचिव उमा शंकर मिश्र का घर भी ढहा दिया है।
याचिका में कहा गया है कि बार के महासचिव उमा शंकर मिश्र को 16 मई 2015 के तत्कालीन एसडीएम, गौरीगंज के आदेश से जमीन के बदले में भूमि प्रबंधन समिति की एक जमीन मिली थी। वर्तमान एसडीएम ने स्वतः संज्ञान लेकर पुनर्विचार याचिका दर्ज करते हुए यह आदेश खारिज कर दिया और तत्काल इसका इंदराज खतौनी में कर दिया। इसके पश्चात उक्त जमीन पर बना उमा शंकर मिश्र का घर गिरा दिया गया।
भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्य व अन्य के खिलाफ मुकदमे की अर्जी परिवाद में दर्ज
बदायूं की भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्य व उनके पिता पूर्व काबीना मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ दाखिल मुकदमे की अर्जी को अदालत ने परिवाद के रूप में दर्ज करने का आदेश दिया है। इस अर्जी में संघमित्रा मौर्य की मां शिवा मौर्य व भाई उत्कृष्ट मौर्य समेत तीन अन्य को भी विपक्षी पक्षकार बनाया गया है। यह अर्जी दीपक कुमार स्वर्णकार ने दाखिल की थी। एसीजेएम अम्बरीष कुमार श्रीवास्तव ने परिवादी दीपक का बयान दर्ज करने के लिए अब पांच जनवरी की तारीख तय की है।
दीपक ने अपनी अर्जी में विपक्षी गणों पर कई कथित गंभीर आरोप लगाए हैं। साथ ही वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में संघमित्रा मौर्य पर झूठी जानकारी देने का भी कथित आरोप लगाया है। उन्होंने इस अर्जी में सभी विपक्षीगणों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश देने की मांग की थी। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि दीपक ने संघमित्रा पर द्विविवाह व मारपीट का आरोप लगाया है।
उनके पास विपक्षीगणों के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं। आवश्यक्ता पड़ने पर वह साक्ष्य अदालत के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। ऐसे में इस मामले की पुलिस जांच में कोई नया तथ्य सज्ञान में आने की संभावना कम है। लिहाजा अर्जी को परिवाद के रुप में दर्ज करना न्यायोचित होगा। दीपक की इस अर्जी पर वकील रोहित त्रिपाठी ने बहस की थी।
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