इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन में हुए हजारों करोड़ के पीएफ घोटाला मामले के अभियुक्तों और डीएचएफएल के प्रबंध निदेशक व निदेशक कपिल वाधवान तथा धीरज वाधवान की जमानत याचिका को नामंजूर कर दिया है। अभियुक्तों द्वारा 60 दिनों में जांच पूरी न होने के आधार पर हाईकोर्ट से जमानत की मांग की थी।
यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने कपिल व धीरज वाधवान की ओर से दाखिल जमानत याचिका पर पारित किया। याचियों की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश चंद्र मिश्रा व नंदित श्रीवास्तव ने न्यायालय को बताया की 26 मई 2022 को अभियुक्तों को हिरासत में लिया गया था। याची के अधिवक्ता ने बताया कि 24 जुलाई 2022 को उनकी हिरासत के 60 दिन पूरे हो गए। लेकिन सीबीआई द्वारा मामले की जांच पूरी करके उनके खिलाफ आरोप पत्र नहीं दाखिल किया जा सका जिसके कारण सीआरपीसी की धारा 167 के तहत अभियुक्तगण डिफॉल्ट बेल पाने के हकदार हैं क्योंकि उन्हें 60 दिनों से अधिक न्यायिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता। याचिका का सीबीआई की ओर से विरोध किया गया।
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पारित अपने आदेश में कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 के तहत चार्जशीट 60 दिनों में दाखिल करने की समय सीमा 10 साल से कम की सजा के मामले में है जबकि 10 साल से अधिक के सजा के मामले में चार्जशीट दाखिल करने की समय सीमा 90 दिनों तक की हो सकती है।
मामले में आरोप है कि बड़े अधिकारियों की मिली-भगत से यूपीपीसीएल के 42 हजार कर्मचारियों के पीएफ से 4122 करोड़ 70 लाख रुपये निकाल कर डीएचएफएल कंपनी में अवैध तौर पर निवेश किया गया। जिसमें से 2267 करोड़ 90 लाख रुपये का नुकसान भी हुआ।