उरई(जालौन)। रिक्शा चालक पीयूष रोजाना ढाई सौ से तीन सौ रुपये कमा पाते थे। उस घर की काम चलाऊ गुजरबसर हो रही थी। पीयूष ने एक दिन अस्पताल में परिवार नियोजन का पोस्टर देखा और पत्नी अर्पणा से इस बारे में चर्चा की। अर्पणा ने भी पीयूष की नसबंदी के लिए हामी भर दी और उन्हें लेकर अस्पताल पहुंची। काउंसलर ने उनसे कुछ सवाल किए और उनके उत्तर से संतुष्ट होने के बाद उनका नसबंदी का फार्म भरवाया। इसके बाद झांसी से आए सर्जन डा. गोकुल प्रसाद ने पीयूष की नसबंदी की।
शहर के मोहल्ला कांशीराम कालोनी निवासी अर्पणा बताती है कि उनके दो बच्चे है। एक छह साल की बेटी कक्षा एक में पढ़ती है और एक पांच साल का बेटा आंगनबाड़ी में जाता है। वह और पति जूनियर हाईस्कूल तक पढ़े हैं लेकिन बच्चों का अच्छा पढ़ाना चाहते है। पति को रिक्शा चलाने में इतना नहीं मिल पाता है कि और बड़े परिवार की गुजर बसर हो सके। पति ने नसबंदी की इच्छा जताई तो उन्होंने भी उन्हें समझाया कि कोई दिक्कत नहीं। वह नसबंदी करा सकते हैं। इसके बाद वह पीयूष को लेकर नसबंदी कराने जिला अस्पताल पहुंची और प्रेरक के रूप में अपना नाम डलवाया। इसके बाद पीयूष की नसबंदी हुई तो पति पत्नी खुशी खुशी घर लौट गए। पीयूष का कहना है कि चौबीस घंटे से ज्यादा हो गए है लेकिन उन्हें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हो रही है। वह अन्य लोगों को भी पुरुष नसबंदी के लिए प्रेरित करेंगे।