लखनऊ : विकास प्राधिकरण (एलडीए) द्वारा कानपुर रोड के पास देवपुर पारा में करोड़ों रुपये खर्च कर गरीबों के लिए आश्रयहीन योजना के अंतर्गत शौचालय, रसोई और स्नानघर जैसी मूलभूत सुविधाओं के बिना बनाए आवासों के मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सख्त टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में दोषी अफसरों को बचाने का लगातार प्रयास हो रहा है।
यह प्रतिक्रिया राज्य सरकार के उस जवाब के बाद आई, जिसमें सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि एलडीए ने जिन अधिकारियों के खिलाफ प्रस्तावित आरोप पत्र भेजे हैं, वे शासन में उपलब्ध नहीं हैं। कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सरकार को आदेश दिया है कि सरकार एलडीए के प्रस्तावित आरोप पत्र का स्टेटस बताए, साथ ही दूसरे अधिकारियों की संलिप्तता पर भी जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 16 जनवरी को होगी।
मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति रजनीश कुमार की खंडपीठ ने अधिवक्ता मोतीलाल यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिए। इसमें कहा गया है कि 2000 में एलडीए ने देवपुर पारा में आश्रयहीन लोगों के लिए 1968 आवास बनाए थे। मगर इनमें टॉयलेट, किचन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थीं।
हाईकोर्ट लखनऊ बेंच ने जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान बहुमंजिला इमारतों के अवैध निर्माण में एलडीए से जवाब तलब किया है। सुनवाई नौ फरवरी को होगी। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिन्दल, न्यायमूर्ति रजनीश कुमार की खंडपीठ ने लेफ्टिनेंट कर्नल अशोक कुमार (सेवानिवृत) की याचिका समेत चार याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया। याचिकाओं में राजधानी में बहुमंजिला इमारतों के अवैध निर्माण का मामला उठाया गया है।
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