चमोली जिले के डीएम हिमांशु खुराना ने अपने ट्विटर हैंडल से जानकारी दी है कि प्राकृतिक आपदा में बेघर हुए परिवारों को मुख्यमंत्री राहत कोष से किराए के लिए 4 हजार रुपए प्रतिमाह की दर से 6 माह तक दिए जाएंगे। साथ ही जोशीमठ में आपदा प्रभावित 46 परिवारों को 5 हजार प्रति परिवार की दर से सहायता धनराशि का वितरण और जरूरतमंद लोगों को सूखे राशन की किट उपलब्ध कराई जायेगी।
इसी बीच धामी सरकार ने शहर में भू–धंसाव संकट के बीच अब जोशीमठ में तय मानक से ज्यादा वाले निर्माण पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। इसको लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जिला प्राधिकरण के अध्यक्षों को निर्देश दे दिए हैं कि पहाड़ी राज्य में अब तय मानक से ज्यादा जो भी निर्माण कार्य हो रहा उसे पूरी तरह से रोक दिया जाए।
हालांकि अब सरकार चाहे जो भी रास्ते अपना रही हो लेकिन जोशीमठ की इस स्थिति की जम्मेदार सरकार ही है, स्थानीय लोगों का कहना है की NTPC की जल विद्युत परियोजना के कारण जोशीमठ की यह स्थिति हुई है। जबकि मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में साल 1976 में ही कहा गया था कि जोशीमठ की जड़ों से छेड़खानी करना जोशीमठ के लिए खतरा साबित हो सकता है।
आयोग द्वारा जोशीमठ का सर्वेक्षण करवाया गया था जिसमें जोशीमठ को ग्लेशियर के साथ आई मिट्टी से बसा हुआ बताया गया था जो कि अति संवेदनशील माना गया था। रिपोर्ट में जोशीमठ के नीचे की जड़ से जुड़ी चट्टानों, पत्थरों को बिल्कुल भी न छेड़ने के लिए कहा गया था। वहीं यहां हो रहे निर्माण को भी सीमित दायरे में समेटने की गुजारिश की गई थी।
जोशीमठ में NTPC की 520 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना पर काम चल रहा है तो वहीं दूसरी ओर हेलंग मारवाड़ी बाईपास का निर्माण भी शुरू हो गया है। ऐसी परियोजनाओं को रोकने के लिए कई बड़े आंदोलन भी किए गए थे लेकिन सरकार के द्वारा बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया गया जिसके कारण जोशीमठ में भू–धंसाव की घटना शुरू हो गई।
जोशीमठ में अचानक मकानों में दरारें और सड़कों का दरकना क्यों बढ़ गया। ये घटनाएं पहले क्यों नहीं हुईं। इस सवाल के जवाब में एक्सपर्ट का कहना है कि मकानों में दरारें पड़ने की घटनाएं पहले भी आई थीं। हालांकि, इनकी संख्या कम थी। चूंकि उस क्षेत्र में निर्माण गतिविधियां बढ़ गई हैं, परियोजनां लागू कर दी हैं। इससे ब्लास्टिंग भी बढ़ गई है।
इस दरारों की वजह, परियोजनाओं की वजह से ही यह प्रभाव पड़ रहा है। सुरंग निर्माण के लिए पहाड़ों के भीतर खुदाई होती है। जिससे पहाड़ों में अस्थिरता आती है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह जांच का विषय है। डॉ. तायल ने कहा कि पिछले दो साल की परियोजनाओं के प्रभावों का अध्ययन करना होगा। इसके बाद ही इसके पीछे की असली वजह सामने आएगी।
हाल ही में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग द्वारा दो साल के एक अध्ययन में पाया गया है कि जोशीमठ और इसके आसपास के क्षेत्र प्रति वर्ष 6.5 सेमी या 2.5 इंच की दर से जमीन धंस रही थी। देहरादून स्थित संस्थान द्वारा सेटेलाइट डेटा का उपयोग करते हुए यह अध्ययन किया है। जोशीमठ में हाल के दिनों में कई घरों में दरारें आने के बाद देश भर में इसकी चर्चा है। जुलाई 2020 से मार्च 2022 तक एकत्र की गई सेटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि पूरा क्षेत्र धीरे–धीरे धंस रहा है। डेटा से पता चलता है कि यह सिर्फ जोशीमठ तक ही सीमित नहीं हैं।
उत्तराखंड के वानिकी कॉलेज रानीचौरी में एनवायर्नमेंटल साइंस के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. एस.पी. सती कहते हैं कि “आज जोशीमठ की जो हालत है उसको अब सुधार पाना नामुमकिन है। जिस गति से जोशीमठ में दरारें बढ़ रही हैं उसको देखकर ऐसा लगता है जैसे जोशीमठ का अधिकांश भू–भाग अब नहीं बचेगा। इसलिए जो लोग अभी जोशीमठ में हैं उनको निकालने और उनके रहने के लिए अस्थाई व्यवस्था की तरफ प्रशासन को ध्यान देना चाहिए। लेकिन, यदि हम चाहते हैं कि राज्य के किसी और शहर की हालत ऐसी न हो तो उसके लिए हमें कुछ ठोस नीति बनाने की जरूरत है।”
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज़ फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि “जोशीमठ में जो घटित हो रहा है उसको तुरंत रोक पाना तो अभी मुश्किल है। कोई बड़ी हानि जनता को न हो इसलिए सरकार को जल्द से जल्द जोशीमठ की जनता को किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना चाहिए।”
प्रशासन की ओर से बताया जा रहा है कि जिन परिवारों के घर रहने लायक नहीं बचे उन्हें नगर पालिका के भवन, प्राइमरी स्कूल, गुरुद्वारा और कुछ लॉज में रहने की व्यवस्था की गयी है। नौटियाल इस दावे पर सवाल उठाते हुए पूछते हैं, क्या ये इमारतें महफूज हैं? ये इमारतें भी जोशीमठ के अंदर ही हैं।