समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरितमानस को लेकर दिए बयान पर विवाद बढ़ता जा रहा है। उनकी अपनी पार्टी ने मौर्या के बयान से किनारा कर लिया है। वहीं, पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव मौर्य के बयान से नाराज बताए जा रहे हैं।
इससे पहले बिहार के शिक्षामंत्री प्रो. चंद्रशेखर यादव ने भी इसी तरह का बयान देकर बिहार की राजानीति में बवाल खड़ा कर दिया था। अब मौर्य का बयान यूपी में राजनीतिक पारे को चढ़ा रहा है। भाजपा मौर्य के बयान पर हमलावर है। वहीं, दूसरी ओर स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ हजरतगंज व ठाकुरगंज थाने में तहरीर दी गई है। इनमें केस दर्ज कर उनको गिरफ्तार करने की मांग की गई है।
आखिर स्वामी प्रसाद मौर्य ने क्या कहा? मौर्य के बयान पर भाजपा नेताओं का क्या कहना है? मौर्य के बयान पर सपा ने क्या प्रतिक्रिया दी? इससे पहले मौर्य के किन बयानों पर बवाल हो चुका है? रामचरितमानस को लेकर आखिर नेता इस तरह के बयान क्यों दे रहे हैं? इसके सियासी मायने क्या हैं? आइये समझते हैं…
मौर्य ने कहा, रामचरितमानस में दलितों और महिलाओं का अपमान किया गया है। तुलसीदास ने इसे अपनी खुशी के लिए लिखा था। करोड़ों लोग इसे नहीं पढ़ते। उन्होंने सरकार से इस पर प्रतिबंध तक लगाने की मांग तक कर दी। मौर्य ने रामचरितमानस को बकवास बताते हुए इसकी कुछ चौपाइयां हटवाने की मांग की।
स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान पर भाजपा नेता अपर्णा यादव ने कहा, ‘‘राम भारत का चरित्र है। राम आज भी उतने की महत्वपूर्ण हैं। रामचरितमानस का लगभग हर भाषा में अनुवाद हो चुका है। हजारों वर्षों के बाद भी आज भी कहीं इसका पाठ होता है तो नया जैसा लगता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी राम को सम्मान देते हैं। इतने महत्वपूर्ण ग्रंथ पर टिप्पणी करना गलत है। ये बयान स्वामी प्रसाद की मानसिकता को दर्शाता है।’
वहीं, भजापा नेता विनीत शारदा ने कहा, ‘किसी धर्म के प्रति ऐसे बोलने का अधिकार किसी को नहीं है। ऐसे लोगों का दिमागी संतुलन खराब हो गया है। ऐसे व्यक्तियों को कठोर से कठोर सजा देनी चाहिए।’
सूत्रों के अनुसार, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान पर नाराजगी जताई है। वहीं, पार्टी ने भी उनके बयान से किनारा कर लिया है। सपा नेता रविदास मेहरोत्रा ने बयान जारी कर कहा कि ये स्वामी प्रसाद मौर्य का निजी बयान है। इससे पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। नेताओं को जनता की समस्याओं आदि पर बोलना चाहिए। किसी धार्मिक पुस्तक पर बोलने से बचना चाहिए। स्वामी प्रसाद ने अज्ञानतावश बयान दिया है। उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।
विधानसभा में सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडेय ने कहा कि जल्द ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलकर उनके बयान के बारे में जानकारी दी जाएगी। किसान नेता भगत राम मिश्र ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को पत्र भेजा है। इसमें उन्होंने स्वामी प्रसाद के बयान को रामचरितमानस का अपमान बताया है। कहा कि उनके इस बयान से पार्टी को नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि मौर्य ने शायद रामचरितमानस नहीं पढ़ी है। पार्टी के अन्य कई नेताओं ने सोशल मीडिया पर इस बयान को लेकर आपत्ति जताई है।
इससे पहले भी स्वामी प्रसाद मौर्य के बयानों से सियासी तूफान आ चुके हैं। सपा एमएलसी कई बार विवादित बयान दे चुके है। चाहे बसपा में रहे हों या भाजपा में हर पार्टी में रहते हुए मौर्य अपने बयानों से पार्टी की मुश्किल बढ़ाते रहे हैं।
2014 में बसपा में रहते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने शादियों में गौरी गणेश की पूजा करने पर सवाल उठाया था। कर्पूरी ठाकुर भागीदारी सम्मेलन में उन्होंने कहा था कि शादियों में गौरी गणेश की पूजा नहीं करनी चाहिए। यह दलितों और पिछड़ों को गुमराह कर उनको गुलाम बनाने की साजिश है।
भाजपा सरकार में मंत्री रहते हुए 29 अप्रैल 2017 को स्वामी प्रसाद मौर्य ने तीन तलाक को लेकर विवादित टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि तीन तलाक देने वाले मुस्लिम सिर्फ अपनी हवस मिटाने के लिए बीवियां बदलते हैं। तीन तलाक के पीछे ओछी मानसिकता है।
नवंबर 2022 में मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के दौरान स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि भाजपा के लोग राम का भी सौदा कर लेते हैं। ये जनता को और राम को भी बेच देते हैं। उस वक्त भी सपा ने किनारा कर लिया था।
इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार से बात की। उन्होंने कहा, ‘कोई भी राजनीतिक नेता हमेशा अपना वोटबैंक देखता है। अपने वोटर्स को खुश करने के चक्कर में वह इतना आगे बढ़ जाता है कि दूसरों को नीचा दिखाने में भी कोई कसर नहीं छूटती। रामचरितमानस के मामले में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। रामचरितमानस की इस तरह की व्याख्या करके ये नेता जातिगत राजनीति कर रहे हैं।’
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से भी हमने यही सवाल पूछा। वह कहते हैं, ‘अगले साल लोकसभा चुनाव होना है। दलित, पिछड़ी, सामान्य हर जाति के मतदाता को झुकावा 2014 से भाजपा की ओर हुआ है। भाजपा ने क्षेत्रीय दलों के परंपरागत वोटबैंट में सेंधमारी की है। इससे राजद, सपा, बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों का वोटबैंक खिसक गया। अब क्षेत्रीय दल भाजपा में गए इसी वोटबैंक को वापस साधने की कोशिश में जुटे हैं। बिहार में जातीय जनगणना हो या रामचरितमानस पर विवादित बोल। ये सभी इसी का हिस्सा हैं।’