यंग भारत ब्यूरो
नेपाल की गंडकी नदी से शालिग्राम की दो शिलाएं अयोध्या (Ayodhya) पहुंच रही हैं. श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में इनसे रामलला (Ramlala) की मूर्ति बनाई जानी है, लेकिन इससे पहले शालिग्राम पत्थरों को प्राण प्रतिष्ठित और भगवान की प्रतिमूर्ति बताते हुए तपस्वी छावनी के जगतगुरु परमहंस आचार्य ने विरोध शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि शालिग्राम की नेपाल से लाई जा रही शिलाओं की इसी रूप में पूजा की जानी चाहिए. अगर मूर्ति बनाने के लिए इस पर छेनी और हथौड़ी चलाई गई तो बड़ा पाप हो जाएगा और विरोध स्वरूप वह अन्न जल त्याग कर अनशन करेंगे.
आपको बता दें कि शालिग्राम को जीवाश्म पत्थर के रूप में जाना जाता है और इनका आवाहन और पूजा भगवान के प्रतिनिधि के तौर पर की जाती है. शिवभक्त पूजा करने के लिए इसे शिवलिंग के रूप में अलग-अलग रूपों में उपयोग करते हैं. कहा जाता है कि शालिग्राम को प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती और न ही इनको स्थापित करने के लिए विशेष पूजन अर्चन की आवश्यकता होती है क्योंकि शालिग्राम को जीवंत स्वरूप माना जाता है. इसी रूप में इनकी पूजा और आराधना की जाती है.
जीवन को अलविदा कहूंगा- परमहंस आचार्य
तपस्वी छावनी के जगतगुरु परमहंस आचार्य ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन जन्मभूमि अयोध्या विगत 500 वर्षों तक लंबे संघर्ष के बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय के जजमेंट के बाद राम मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से शुरू है. एक बड़ी मूर्ति के लिए नेपाल से दो विशाल शालिग्राम की जिसका वजन लगभग 127 क्विंटल है आ रही है और पूरे उत्साह के साथ संत भक्त और सभी लोग मिलकर के पूजन अर्चन कर रहे हैं. अयोध्या से मैं तपस्वी छावनी पीठाधीश्वर जगतगुरु परमहंस आचार्य एक धर्माचार्य के नाते मैंने जैसा सुना कि उनकी मूर्ति तरासी जाएगी और उन पर छेनी हथौड़ी चलेगी. मैं बहुत आहत हूं. मैं निवेदन करूंगा कि ऐसा अनर्थ ना करें क्योंकि शालिग्राम एक ऐसी शिला है जो यह सामान्य शिला नहीं है. शालिग्राम एक ऐसे स्वयं प्रतिष्ठित है प्राण प्रतिष्ठा की जरूरत नहीं पड़ती है.