दोगुनी हुई यूपी की अर्थव्यवस्था
सीएम ने कहा कि 5-6 वर्षों में यूपी ने लंबी यात्रा प्रारंभ की है। इस दौरान यूपी की अर्थव्यवस्था लगभग व प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हुई है। यहां न केवल कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतरीन हुई, बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट के भी नए मॉडल खड़े किए गए हैं। आज यूपी ने जब पीएम मोदी के विजन को बढ़ाने के लिए वन ट्रिलियन इकॉनमी बनाने की दिशा में नए प्रयास प्रारंभ किए हैं तो शिक्षा के क्षेत्र में असीम संभावनाओं को बढ़ाने में हम योगदान दे सकते हैं। उसे नई उड़ान देने के लिए यूपी में केंद्रीय, राज्य व निजी विश्वविद्यालय ने अच्छे प्रयास प्रारंभ किए हैं। रिसर्च के कुछ मॉडल दिए हैं। नए मानक गढ़े हैं। उस दिशा में विस्तृत मनन हो सके, ज्ञान का आदान-प्रदान कर सके, स्रोत व नवाचार को सूबे के हर कोने तक विस्तार देकर यूपी को फिर से शिक्षा के बेहतरीन केंद्र के रूप में विकसित कर सकें।
दम तोड़ रहा था एमएसएमई, हमने दी बड़ी ऊंचाई
सीएम ने कहा कि यूपी के पास एमएसएमई का सबसे बड़ा बेस था, लेकिन दम तोड़ रहा था। 2017 में वेतन देने के पैसे नहीं थे। हमने कार्य प्रारंभ कर उसे ओडीओपी के रूप में प्रमोट किया, ब्रांडिग की, बाजार दिया, नई डिजाइन व तकनीक दी। जो लोग पहले कैरोसीन व डीजल से संचालित करते थे, उन्हें बिजली की सुविधा उपलब्ध कराई। परिणाम स्वरूप यूपी का एक्सपोर्ट दोगुने से ज्यादा हुआ। आज 1 लाख 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक का एक्सपोर्ट एमएसएमई कर रहा है। इसमें भी नए स्टार्ट अप स्थापित करने की संभावना है। यूपी के पास 96 लाख यूनिट है। अलग-अलग जगह की अलग-अलग संभावनाएं हैं। यूपी के पास स्किल पावर है।
विश्वविद्यालय लोकल स्थितियों पर क्यों काम नहीं कर सकते। बहुत बार देखता हूं कि बड़ा प्रोजेक्ट करना होता है तो सोशल इम्पैक्ट स्टडी करानी पड़ती है, यह काम हमारा एक भी विश्वविद्यालय क्यों नहीं कर पाता है। हमारी शिक्षा में कोई न कोई खामी जरूर होगी। हम सक्षम बनाने में विफल हुए हैं। हम चाहते हैं कि हमारे केंद्रीय, राज्य व निजी विश्वविद्यालय इस पर काम करें। हमारा पास स्टडी होनी चाहिए। उनके सामाजिक, भौगोलिक स्थिति का अध्ययन आपके पास होना चाहिए। यूएन 2030 तक सन्सटेनेबल डवलपमेंट गोल्स को अचीव करने का लक्ष्य दुनिया को देता है तो क्या यह कार्य सिर्फ सरकार का है, संस्थाएं इन जिम्मेदारियों को लेकर इस कार्यक्रम से जुड़ पाएंगी।
इंसेफेलाइटिस पर हमने 95 फीसदी से अधिक अंकुश लगाया
सीएम ने कहा कि लंबे समय तक गोरखपुर में सांसद के रूप में प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। वहां इंसेफेलाइटिस से प्रतिवर्ष हजारों मौत होती थी। 40 वर्ष तक मौत का सिलसिला चलता रहा। पूर्वी यूपी के किसी विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज या डॉक्टर ने उस पर रिसर्च पेपर नहीं लिखा। मैं जूझता रहा, लड़ता रहा। सत्ता में थे तो सरकार का ध्यान आकर्षित करता था, लोगों को संसाधन उपलब्ध कराता था, विपक्ष में थे तो सड़कों पर आंदोलन करता था। 2017 में जब मुख्यमंत्री का दायित्व मिला तो मैंने कहा कि अब मुझे इसका समाधान निकालना होगा। मेरा अनुभव पास था, मैंने अंतर विभागीय समन्वय के लिए टीम बनाई।
सीएम ने कहा कि उपचार से महत्वपूर्ण जागरूकता है। तब तक स्टडी नहीं थी। 40 वर्ष में 50 हजार मौत के बावजूद उस बीमारी पर कोई रिसर्च नहीं था। वहां के 10 हजार चिकित्सक निजी प्रैक्टिस करते हैं, वहां कई विश्वविद्यालय हैं, उनके पास कोई अध्ययन नहीं था, क्योंकि समाज से हमारा वैराग्य भाव था। हम समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भाव नहीं आता, हर व्यक्ति नौकरी तक खुद को सीमित कर लिया। इतने वर्षों के बाद जब हमने कार्य प्रारंभ किया तो सबसे पहले कुशीनगर में अभियान चलाया। वहां डेटॉल कंपनी के साथ साबुन बांटे।
उन्होंने आगे कहा कि मेरे खिलाफ तीन दिन तक मीडिया में अभियान चला कि गरीबों का अपमान हो रहा है। मैंने कहा कि बोलने की आवश्यकता नहीं, यह समझ न पाएंगे। हम जिस अभियान को लेकर चल रहे हैं। स्वच्छता के वृहद अभियान को मिशन मोड में उठा लिया। शुद्ध पेयजल की आपूर्ति कराई, शौचालय बनवाए, चिकित्सालयों की व्यवस्था को सुदृढ़ किया, सर्विलांस को बेहतर किया। परिणाम है कि जिस बीमारी से प्रतिवर्ष 12 00से 1500 मौत होती थी, आज हमने उस पर 95 से 97 फीसदी अंकुश लगाया। पहले स्टडी हुई होती तो कई बच्चों की जानें बच सकती थीं।
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