लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अयोध्या विवादित ढांचा मामले में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह समेत 32 को बरी कर दिया है। सीबीआई की विशेष अदालत ने पहले 30 सितंबर 2020 को सभी आरोपियों को बरी किया था। इसमें कहा गया था कि मस्जिद को गिराने की योजना नहीं बनी थी, न ही कोई साजिश थी। हालांकि इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। इस याचिका पर जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्जिस सरोज यादव की पीठ ने 31 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित कर दिया था। अब हाई कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है। इससे सभी आरोपी बरी हो गए हैं।
अयोध्या विवादित ढांचा मामले में लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य आरोपियों को बरी करने के खिलाफ याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर की गई थी। ये याचिका अयोध्या के रहने वाले हाजी महमूद अहमद और सैयद अखलाक अहमद की तरफ से दायर की गई थी। इसमें दावा किया गया कि वह दोनों 6 दिसंबर 1992 विवादित ढांचा मामले के गवाह हैं, उस घटना में उनका घर भी जल गया था, ऐसे में वह इसके शिकार भी हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि जांच एजेंसी ने आरोपियों को बचाने की भूमिका निभाई। जबकि पीड़ित पक्ष को राज्य सरकार, पुलिस और सीबीआई से मदद नहीं मिली।
1990 का वीडियो हो रहा वायरल
1990 के इस वीडियो में आडवाणी रात के वक्त एक सभा को संबोधित कर रहे हैं। लोगों को संबोधित करते हुए आडवाणी कह रहे हैं, ‘लोग कहते हैं कि आप अदालत का फैसला क्यों नहीं मानते? अदालत क्या इस बात का फैसला करेगी कि यहां पर राम का जन्म हुआ था कि नहीं हुआ था। आप से इतनी आशा है, बीच में मत पड़ो। रास्ते में मत आओ। क्योंकि ये जो रथ है, लोक रथ है, जनता का रथ है। जो सोमनाथ से चला है, और जिसने मन में संकल्प किया हुआ है कि 30 अक्टूबर को वहां पर पहुंचकर कार सेवा करेंगे और मंदिर वहीं बनाएंगे उसको कौन रोकेगा? कौन सी सरकार रोकने वाली है?’
बाबरी मस्जिद से जुड़ा पूरा मामला
दरअसल हिंदू और मुस्लिम समुदायों में अयोध्या की बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद था। हिंदूवादी नेताओं का दावा था कि मस्जिद श्रीराम जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर बनी है। मस्जिद को 1528 में बाबर के कमांडर मीर बाकी ने बनवाया था। इस पर हिंदू और मुस्लिम दोनों ही अपना दावा ठोंकते थे। 1885 से ही यह मामला अदालत में था। 1990 के दशक में बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ने लगा। 6 दिसंबर 1992 को उन्मादी भीड़ ने मस्जिद को तोड़ दिया। इस मामले में आडवाणी, जोशी समेत कई बीजेपी नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में मुकदमा दर्ज है। बाद में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई।
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