भगवती मिश्रा- प्रभारी जालौन तहसील + त्रिलोकी नाथ गुप्ता
महारानी लक्ष्मीबाई जयंती पर भाजपा नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की
जालौन।महारानी लक्ष्मीबाई पार्क जालौन में महारानी लक्ष्मीबाई की जयंती के अवसर पर वरिष्ठ भाजपा नेता वाचस्पति मिश्रा योगेन्द्र राठौर भगवती मिश्रा महेश अवस्थी त्रिलोकी नाथ गुप्ता अखलेश गुप्ता अनिल मित्तल के सी पाटकार श्रवण कुमार श्रीवास्तव आदि ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। जहाँ चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से “छबीली” कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली।सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सितंबर 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया। ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़प नीति के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।
बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के तत्वावधान में महारानी लक्ष्मीबाई जयंती मनाई गई
जालौन। बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के तत्वाधान में बुंदेलखंड की आन बान शान वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की जयंती मनाई गई। वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा पर सभी कार्यकर्ताओं द्वारा माल्यार्पण किया गया ।इसके बाद जब तक सूरज चांद रहेगा रानी तेरा नाम रहेगा के जयघोष के साथ सभी ने श्रद्धांजलि अर्पित की।बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के जिला अध्यक्ष प्रद्युम्न दीक्षित इटहिया ने बताया कि आज बुंदेलखंड की पहचान सारे विश्व में वीरांगना लक्ष्मीबाई की वजह से है जिन्होंने अदम्य साहस शौर्य और वीरता का परिचय देते हुए अंग्रेजी हुकूमत के हुक्मरानों के दांत खट्टे कर दिए थे और अंग्रेजी हुकूमत यह समझ गई थी कि अब हिंदुस्तान को ज्यादा समय तक गुलाम नहीं रख सकते हैं क्योंकि यहां की नारियों में भी अपार साहस और वीरता भरी हुई है । इस अवसर पर लला पाटकार छविराम यादव अजमेरी रायन विनोद साहू विवेक श्रीवास्तव वसीम रायन मोहम्मद मुकीम लखन भदोरिया मोटू मिश्रा अवधेश सोनी मुबारक भाई आदि लोग उपस्थित रहे
भैरव अष्टमी के उपलक्ष्य में भैरव मंदिर पर भंडारे का आयोजन किया गया
जालौन।भैरव जी मन्दिर जालौन पर भैरव अष्टमी के उपलक्ष्य में भंडारे का आयोजन भैरव जी के पुजारी महेश अवस्थी के सरंक्षण में सम्पन्न हुआ ।जिसमें भक्तो ने जमकर भंडारा छका।इस अवसर पर भैरव जी का अभूतपूर्व श्रंगार किया गया।इस अवसर पर वाचस्पति मिश्रा भगवती मिश्रा त्रिलोकी नाथ गुप्ता अनिल मित्तल विजय शर्मा महावीर मिश्रा के सी पाटकार श्रवण श्रीवास्तव योगेन्द्र राठौर सतीश सेंगर आदि उपस्थित रहे। भैरव अष्टमी, जिसे भैरवाष्टमी, भैरव जयंती, काल-भैरव अष्टमी और काल-भैरव जयंती के रूप में भी जाना जाता है, यह हिंदू धर्म का पवित्र दिन है जो भैरव, भगवान शिव का एक भयावह और क्रोधी अवतार लेने का दिन है। इस दिन का भैरव का जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह कार्तिक के हिंदू महीने के पंद्रहवें दिन (अष्टमी) को घटते चंद्रमा (कृष्ण पक्ष) के पखवाड़े में पड़ता है। भैरव अष्टमी नवंबर, दिसंबर या जनवरी में एक ही दिन पड़ती है। कालाष्टमी नाम का उपयोग कभी-कभी इस दिन को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, लेकिन कृष्ण पक्ष में किसी भी अष्टमी को भी संदर्भित किया जा सकता है, ये सभी भैरव के पवित्र दिन हैं, जिन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है। भगवान भैरव का वाहन कुत्ता होता है अर्थात् भगवान भैरव कुत्ते की सवारी करते है। भैरव, भगवान शिव का क्रोध का रूप अवतार है। ऐसा कहा जा सकता है कि भैरव, भगवान शिव के क्रोध का प्रकटीकरण है। इस अवसर पर वर्णित कथा के अनुसार, त्रिमूर्ति देवता, ब्रह्मा, विष्णु और शिव गंभीर मनोदशा में बात कर रहे थे कि कौन उन सभी में से कौन श्रेष्ठ है। इस बहस में, शिव ने ब्रह्मा द्वारा की गई टिप्पणी से थोड़ा क्रोध आया गया और अपने गण भैरव को ब्रह्मा के पांच सिर में से एक को काटने का निर्देश दिया। भैरव ने शिव की आज्ञा का पालन किया और ब्रह्मा का एक सिर काट दिया गया और इस तरह वे चार मुखिया बन गए। भय से भरे हुए, अन्य सभी ने शिव और भैरव से प्रार्थना की।
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